इन दिनों जब सरकारी बंगले को लेकर देश के पूर्व मुख्य न्यायाधीश माननीय यशवंत चंद्रचूड साहब सुर्खियों में तब मुझे मप्र के मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का जिक्र जरूरी लगा। डॉ मोहन यादव सरकारी बंगले में रहते हैं लेकिन उनका परिवार नहीं। परिवार गृहनगर उज्जैन में ही रहता है।
आपको पता है कि मै किसी का भी कसीदा नहीं लिखता। इस मामले में शुरू से निर्मम हूँ। डॉ यादव के बारे में भी लिखते हुए मेरी कलम निर्मम ही रहती है लेकिन जब मुझे पता लगा कि सचमुच मुख्यमंत्री यादव का परिवार सरकारी बंगले के मोह से मुक्त है तो मुझे अच्छा लगा। क्योंकि सरकारी बंगले के मोह ने जस्टिस वायवी चंद्रचूड को भी विवादों में ला खडा किया। दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल का सरकारी बंगला तो चुनावी मुद्दा तक बना ही था।
आपको याद होगा कि अरविंद केजरीवाल ने सरकारी बंगला इतना सजा दिया था कि भाजपा को वो शीश महल लगने लगा था, यह विवाद 2023-2024 में दिल्ली विधानसभा चुनावों के दौरान प्रमुखता से उभरा, जब भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने आरोप लगाया कि केजरीवाल ने सरकारी बंगले के नवीनीकरण पर 33.66 करोड़ रुपये से अधिक खर्च किए, जिसमें महंगे झूमर, स्मार्ट टीवी, और अन्य लग्जरी सुविधाएं शामिल थीं। बीजेपी ने इसे 'शीशमहल' करार देते हुए इसे भ्रष्टाचार और जनता के पैसे के दुरुपयोग का प्रतीक बताया था।
मप्र के मुख्य मंत्री मोहन यादव ने राजधानी भोपाल स्थित मुख्यमंत्री निवास में अपने परिवार के न रखने की वजह को छिपा रखा था। लेकिन जब खुसुर-पुसुर शुरु हुई तो उन्होने खुद कहा कि उनका मानना है कि मुख्यमंत्री बनने के बाद पूरे परिवार को सरकारी सुविधाओं का लाभ लेने के लिए आगे नहीं आना चाहिए।
यादव कहते हैं कि परिवार को सरकारी दायित्वों से दूर रखना उनकी सोच और जवाबदेही का हिस्सा है।
आपको बता दूं कि मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव का एक बेटा डॉ अभिमन्यु भोपाल के एक मेडिकल कॉलेज में एमएस का छात्र है, लेकिन वह भी मुख्यमंत्री आवास में न रहकरकालेज हॉस्टल में रहता है। यादव का दूसरा बेटा अपनी मां के साथ गृहनगर उज्जैन में ही रहता है। उज्जैन में उनकी बेटी और दामाद एक अस्पताल संचालित करते हैं। यादव को उनकी पत्नी सीमा यादव ने भी उनका पूरा साथ दिया है। पहले वे अपने वृद्ध सास की सेवा के लिए उज्जैन में रहीं और अब हाल ही में हुई अपने बड़े बेटे की शादी के बाद नई बहू और परिवार की जिम्मेदारियों को संभाल रही हैं।
सबको चौंकाकर अप्रत्याशित रुप से मुख्यमंत्री बने डॉ मोहन यादव ने बताया "मेरी श्रीमती ने कहा कि आप राजधानी भोपाल में रहें, कोई दिक्कत नहीं, मैं बच्चों का ध्यान रखूंगी। यादव इस मामले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदीको आदर्श मानते हैं। उनका कहना है कि सरकारी दायित्व निभाते समय परिवार को दूरी बनाए रखनी चाहिए। हम प्रधानमंत्री जी का ही अनुसरण कर रहे हैं और उसी दिशा में आगे बढ़ रहे हैं।
आपको याद हो गया कि सरकारी बंगलों से परिवार को बहुत कम नेता दूर रख पाते हैं, अन्यथा जिनके पास पूरा परिवार नहीं होता वे नेता अपनी बेटी-दामाद को ही सरकारी बंगले में रख लेते हैं। पूर्व राष्ट्रपति डॉ ज्ञानी जैल सिंह, पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी इसका उदाहरण हैं। ये पहला मौका है जब दिल्ली में प्रधानमंत्री का और भोपाल में मुख्यमंत्री का सरकारी बंगला परिवार विहीन है।
डॉ मोहन यादव को मप्र की कमान सम्हालते डेढ साल हो गया है, लेकिन वे अभी शिवराज सिंह चौहन की तरह अपनी अलग छवि नहीं गढ पाए है। वे न मामा बन पाए न भैया हालांकि उन्होने शिवराज सिंह चौहान द्वारा बनाई लाडली बहनों को हर महीने दी जाने वाली रकम बढा दी है। अब देखना है कि आने वाले दिनों में वे अपनी अलग छवि गढ पाते हैं या नहीं। वे कोशिश तो लगातार कर रहे हैं।
— राकेश अचल
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